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क्रमशः

क्रमशः 

I
वो आंसू पीता हुआ बोला -
"हमका माफ कर दीजे हुजुर"
पर ठेकेदार पीटता रहा -
"बहुत देखे तेरे जैसे मजूर !
नेतागिरी दिखाते हो ?
कामचोरी करते हो ?
पहले तो काम के लिए रोते हो..
जो मिलता है तो सर पर ही चहड़ जाते हो !"
"मगर हम तो..."
"चोप्प साला ! बहस करता है
मुह ना दिखाना |
पेट सीने में दफन हो जाए
तब भी ना आना |
बहस करता है !
आँख दिखता है |"
ठेकेदार ने हाँफते हुए आखिरी लात लगायी
थक गए थे जनाब |
थूक कर चलने लगे...
"हाँ कमजोर को तो सभी सताते है साहब !"
बाकी मज़दूरों ने उसे उठाया
"मालिक लोग का
मू काहे लगते हो ?
इन्ही का रहम से घर में कभी कभार चूल्हा जलता है..."
वह चुपचाप वहां से चल दिया..
मुह के खून को भी गोट लिया...
थूकता तो मालिक गुस्सा करते !


II
लड़खड़ाते कदम
अपनी झोपड़ी की ओर बढ़ते जाते थे |
कोई देहाती गीत मानों लबों पर आते थे
पर कराहने से फुर्सत न मिलता |
"साला... कहता है कि कामचोर है
बहस करता है
पगार बढ़ाने कि बात
की थी
मु... मुन्ना बीमार है..."
आंसू पोंछ उसने दरवाजा खटखटाया
अन्दर चुप्पी थी |
उसने दरवाज़े पर अपने लड़खड़ाते हाथ दे मारे |
बीवी ने कपाट खोला |
"का हुआ जी इतना खून...!!"
"का कर रही थी इत्ती देर !
कबसे दरवाजा पीट रखे हैं हम..
तनिक जल्दी नहीं आ सकती थी !"
"आ ही तो रही थी, वो मुन्ना..."
उसने बीवी के बाल झपट लिए
उसे ज़मीन पर गिरा दिया
और बेरहमी से पीटने लगा |
बीवी रो रही थी - "काहे मारते हो..
कमजोर को काहे सताते हो..."
"बहस करती है
आँख दिखाती है !"
वो मारता जा रहा था |


-क्रमशः

                                            -Sourav Roy "Bhagirath"

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